आखिर क्यों उठानी पड़ी विधायक बंसल को विधानसभा में सट्टे के खिलाफ आवाज ?
नशे के साथ-साथ हनुमानगढ़ में सट्टा विरोधी मुहिम की भी सख्त जरूरत
- पत्रकार पर हुए हमले से लेना चाहिए सबक
- आखिर क्यों उठानी पड़ी विधायक बंसल को विधानसभा में सट्टे के खिलाफ आवाज ?
✍️अनिल जान्दू
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हनुमानगढ़ । श्रीगंगानगर में सट्टे कारोबारियों द्वारा दैनिक सांध्य अखबार के संपादक पर किए जानलेवा हमले की घटना से हनुमानगढ़ के जागरूक नागरिकों और मीडियाकर्मियों को सबक लेना चाहिए। क्योंकि वहां की तरह यहां भी सट्टे के कारोबारियों को पुलिस के साथ-साथ बड़ा रुतबा रखने वालों का संरक्षण प्राप्त है। श्रीगंगानगर में वर्षों पुराने इसी सिस्टम के अभेध्य मायाजाल को तोड़ने की मंशा और ताकत जुटाकर जब एक पत्रकार /संपादक ने आवाज उठाई तो सट्टा कारोबारियों ने दो दिन पहले उस पर जान लेवा हमला कर उसके हाथ पांव बुरी तरह से तोड़ डाले। पत्रकार के दोनों पैरों की नलियों को हॉकी, सरियों, बेसबॉल डंडों से तोड़ दिया गया। पत्रकार अभी भी आईसीयू में भर्ती हैं। एफआईआर दर्ज हुई। आरोप लगे पुराने सट्टा कारोबारी राकेश नारंग पर। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम हनुमानगढ़ में बने ऐसे ही इस पुराने सिस्टम को जवाबदेह ठहराएं और ऐसा सटीक, तथ्य-आधारित, पारदर्शी, निष्पक्ष और मानवीय तरीके से करें। जबकि यहां तो ऐसा कार्य हुआ है जो आज तक राजस्थान के इतिहास में हुआ ही नहीं। पहली बार किसी विधायक ने सट्टे के खिलाफ विधानसभा में आवाज उठाई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि सत्ताधारी पार्टी भाजपा समर्थित हनुमानगढ़ के विधायक गणेश राज बंसल को इस मुद्दे के लिए राजस्थान विधानसभा में आवाज उठानी पड़ी क्योंकि उन्हें भली भांति मालूम था कि इस काले धंधे की जड़े कितनी गहरी है। विधायक गणेश राज बंसल द्वारा सट्टे का मुद्दा विधानसभा में उठाना काफी चर्चित रहा। बावजूद इसके जिले भर में व्यापक स्तर पर फैले हुए सट्टा कारोबार पर पुलिस प्रशासन द्वारा किसी भी तरह कि कार्रवाई नहीं किए जाने से पुलिस विभाग कि कार्यशैली पर भिन्न-भिन्न सवाल उत्पन्न हो रहे हैं। जिले ही नही अपितु बीकानेर संभाग स्तर पर आमजन के बीच पुलिस कि निरंकुश पड़ चुकी कार्यशैली पर तरह-तरह कि चर्चाओं ने जोर पकड़ा है। जिसे अव्यवस्थित पड़ी कानून-व्यवस्था के लिए उचित नही माना जा सकता है। जिले में सट्टा पर्ची के साथ क्रिकेट और चुनावी सट्टे का कारोबार भी पिछले काफी समय से फल फूल रहा है। सट्टे का काला खेल यहां पर आज से नहीं, बल्कि बरसों से चल रहा है, लेकिन समय-समय पर आए दबंग प्रशासनिक अधिकारियों की कारवाइयों और सख्ती के चलते चोरी-छुपे चलने वाला यह खेल अब बेरोकटोक बकायदा काउंटर लगाकर चलाया जा रहा है। इस काले कारोबार की जड़े जिले की हर गली से लेकर मोहल्ले तक फैल गई हैं। ऐसा नहीं कि इन सटोरियों पर कार्रवाई करने वाले जिम्मेदार अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है, बल्कि सांठगांठ के चक्कर में सभी मौन हैं। यह पूरा खेल एक चैन सिस्टम में चलता है, जिसमें कुछ बड़े सटोरिए अपने कुछ कर्मचारियों व एजेंटों के माध्यम से यह लाखों-करोड़ों का खेल करवाते हैं। सट्टा कारोबारियों के संरक्षण में जिला मुख्यालय सहित जिले की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र की तहसील, कस्बों, गांवों यहां तक कि ढाणियों तक में रोज लाखों-करोड़ों के सट्टे लिखे जाते है। सभी जगह पर्ची कलेक्शन सेंटर स्थापित और संचालित हैं। संचालक जिले में अलग-अलग तरीके से सट्टे का जाल फैला रहे है। इन दिनों तो बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ियों से पर्ची पिकअप होने लगी है। चाय के खोखे, पनवाड़ी, हेयर सैलून, मिठाई की दुकान से लेकर ब्यूटी पार्लर तक में सट्टे का काला करोबार चलने लगा है। एक बड़े संरक्षण की छत्र-छाया में इन दिनों सट्टा माफियाओं के हौसले बुलंद है। हालांकि कभी-कभार थोड़ी बहुत रकम के साथ सटोरिए को पकड़ कर या फिर सटोरिए के किसी छोटे कर्मचारी को थाने बुलाकर उस पर कार्रवाई कर खानापूर्ति कर ली जाती है। जबकि बड़े सटोरियों पर आजतक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। जहां राज्य में भजन लाल सरकार के सख्त निर्देश व मंशा है कि किसी भी स्थिति में अवैध कार्य संचालित नही होंगे। लेकिन अवैध कारोबारियों को जब उनके ही जिम्मेदार नेता और पुलिस संरक्षण देने लगें तो रोकेगा कौन ? जबकि जिले के सैकड़ों परिवार इस धंधे में रोज लुटते जा रहे हैं। दिनभर खून पसीने से कमाएं गए मेहनत के पैसे सट्टे में लुटाए जा रहे है जिससे परिवारों में रोज मारपीट और गृह क्लेश हो रहे है। ऐसे माहौल में बढ़ रही नशा प्रवृति के साथ-साथ युवा पीढ़ी का भविष्य अंधकार मय होता जा रहा है। जिले में चल रही नशा विरोधी मुहिम के साथ-साथ आज इस काले कारोबार विरोधी मुहिम की भी सख्त आवश्यकता है।