शादी में आखिर तोरण क्यों मारा जाता है, इस रस्म के किए बगैर फेरे क्यों नहीं होते ?
-ः अनिल जान्दू :-
शादी में आखिर तोरण क्यों मारा जाता है और इस रस्म के बाद ही फेरे क्यों होते है। तोरण पर तोता बनाया जाता है या चिड़ियां ? क्या शादीशुदा और क्या कुंवारे किसी को भी पता नहीं है की लकड़ी से बने हुए इस ढांचे जैसी आकृति पर छड़ी या तलवार से वार करने के बाद ही दुल्हन के घर में प्रवेश क्यों होता है। लोग उस वक्त शादी में अक्सर बातें भी करते हैं की इस प्रथा के बारे में एक कहानी सुनी तो है पर अब याद नहीं है। राजस्थान राज्य से बाहर से आए हुए लोग जब हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर सहित अन्य जिलों कस्बों के गांवों और शहरों में घूमते हैं तो उन्हें लोगों के घरों के दरवाजे के ऊपर लकड़ी नुमा टंगा हुआ यह ढांचा बड़ा अजीब लगता है। कोतूहल की दृष्टि से देखते हुए लोग इसे सजावटी या फिर अंधविश्वास से जुड़ा हुआ प्रतीक मानते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि यह यह कृति वैवाहिक रस्म कार्यों का अभिन्न अंग है। हिन्दू समाज में शादी में तोरण मारने की एक आवश्यक रस्म है। जो सदियों से चली आ रही है। लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते कि यह रस्म कैसे शुरू हुई। राजस्थान एक बहुत बड़ा प्रदेश है और यहां हर क्षेत्र में रीति-रिवाज भी अलग-अलग है। ऐसी ही एक परंपरा है हिन्दू विवाह के समय तोरण मारने की प्रथा। जब विवाह के समय दूल्हा घोड़ी पर बैठकर दुल्हन के घर आता हैं। तब दूल्हा अपनी तलवार या छड़ी से दुल्हन के घर की चोखट पर बंधे तोरण को अपनी तलवार से छूता है फिर घर में प्रवेश करता है। इसे ही तोरण मारना कहां जाता है, इस तोरण मारने की प्रथा के पीछे कई पौराणिक दंत कथाएं और किवंदितिया है।
तोरण मारने की प्रथा की एक प्रोणाणिक कहानी अनुसार एक समय की बात है आर्यवर्त में एक साम्राज्य था। उस साम्राज्य में सब कुशल-मंगल था, और प्रजा भी अपने राजा से प्रसन्न थी एवम् हंसी खुशी से अपना जीवन यापन कर रही थी। किन्तु राजा के कोई संतान ना होने के कारण राजा बहुत उदास रहता था। समय निकलता गया किन्तु उन्हें संतान प्राप्ति नही हुई। फिर किसी तपस्वी संत के आशीर्वाद से राजा को एक पुत्री की प्राप्ति हुई। बहुत दिनों तक निसंतान रहने के कारण नन्ही राजकुमारी अपने माता पिता की बहुत लाड़ली थी। इसी कारण राजकुमारी स्वभाव से बहुत चंचल थी और दिन भर अपनी सखियों के साथ राजमहल में खेलती रहती थी। राजकुमारी की यह सब खेलकूद एक तोरण नामक तोता रोज देखता था, और रोज राजमहल में आता था। राजकुमारी की शैतानियों से परेशान होकर राजा अपनी पुत्री को कहते थे की अगर आप ज्यादा शैतानी करोगे तो आपकी शादी इस तोते से करवा देंगे। किन्तु राजकुमारी पर इन सब बातो का कोई फर्क नही पड़ रहा था, इसलिए राजा ने राजकुमारी को कहां की आज से यही तोता आपका होने वाला पति है। समय गुजरता गया और राजकुमारी भी बड़ी हो गई। बचपन की बाते राजा भी भूल गया था। कुछ दिनों बाद एक उचित वर देखकर राजा ने अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया। शादी पक्की हो गई और बारात भी पहुंच गई। राजकुमार घोड़ी पर बैठकर बैंड-बाजों के साथ राजकुमारी के दरवाजे पर पहुंच गया। किन्तु दरवाजे पर वही तोता तोरण पहले से बैठा था, तोरण नमक इस तोते ने राजकुमार से कहां की राजकुमारी की शादी तो बचपन में ही उससे तय हो गई थी, इसलिए राजकुमारी से वह विवाह करेगा। इस बात का पता लगने से चारों और बात फैल गई। राजा भी अपने मुंह से बार-बार बोले गए वचनों के कारण मौन रहा, क्योंकि उसने भूलवश अनजाने में राजकुमारी का विवाह तोरण के साथ तय कर दिया था। सब सोचने पड़ गए की अब क्या करे। एक तरफ दरवाजे पर घोड़ी पर दूल्हा खड़ा था, और दूसरी तरफ तोता तोरण भी हठ किए था की विवाह वह करेगा। तब राजकुमार ने अपनी तलवार निकाली और तोते तोरण का वध कर दिया एवम् विवाह करने हेतु राजमहल में प्रवेश किया। इस तरह विवाह के समय मौजूद सभी बुरी नजर का अंत हुआ और हंसी-खुशी से विवाह संपन्न हुआ। इसी तरह की एक अन्य प्राचीन दंत कथा के अनुसार कहा जाता है कि तोरण नाम का एक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था। जब दूल्हा द्वार पर आता तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था। एक बार एक साहसी और चतुर राजकुमार की शादी के वक्त जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की। बताया जाता है कि उसी दिन से ही तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई। तब से इस रस्म में दुल्हन के घर के दरवाजे पर लकड़ी का तोरण लगाया जाता है, जिस पर राक्षस के प्रतीक के रूप में एक तोता होता है। बगल में दोनों तरफ छोटे तोते होते हैं। दूल्हा शादी के समय तलवार से उस लकड़ी के बने राक्षस रूपी तोते को मारने की रस्म पूर्ण करता है।
यह दोनों कथाएं एक जैसी है लेकिन तोरण प्रथा में तोता होता है या चिड़िया यह अभी भी अनसुलझी पहेली बनी हुई ही है। चिड़िया पर बनी एक अन्य किंवदंती के अनुसार पुराने समय में एक राज्य में एक राजकुमारी जब छोटी थी तो उसकी मां कहा करती थी कि मेरी बेटी सारा दिन चिडिय़ा जैसी चहकती रहती है, बड़ी होने पर किसी दिन कोई चिड़ा आ कर तुझे ले जाएगा। पास ही पेड़ पर बैठा चिड़ा यह बात रोज सुना करता था। एक दिन यह देख कर वह अचंभित रह गया कि राजकुमारी की शादी होने जा रही है और एक राजकुमार उसके दरवाजे पर खड़ा है। निराश हो कर उसने राजा के सामने फरियाद की। राजा ने रानी से पूछताछ की तो चिड़े की कही बात सही निकली। इस पर रानी ने कहा कि वह तो यूं ही प्यार में कहा करती थी, इसका अर्थ ये तो नहीं कि सच में वह अपनी बेटी की शादी किसी चिड़े से करवा देगी। राजा और रानी ने जब अपनी बेटी की शादी चिड़े से करवाने से इंकार कर दिया तो वह अपनी बिरादरी के सभी चिड़े, चिड़ियों को इकट्ठा ले आया और युद्ध पर उतारू हो गया। हजारों पक्षियों से हुए युद्ध में राजा हार गया। जैसे ही वह राजकुमारी को ले जाने लगा तो प्रजा ने अपने देवी देवताओं का पूजन कर समस्या का समाधान करने का आग्रह किया। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो यह समस्त मानव जाति के लिए शर्म की बात होगी, भला चिड़िया और आदमी का विवाह कैसे हो सकता और वंश भी कैसे बढ़ेगा? काफी समझाने के बाद अंत में चिड़िया प्रजाति को यह समझ आ गया कि राजकुमारी को अपने साथ ले जाने में उनकी भलाई नहीं है। चिड़ा भी मान गया था और बोला कि वह राजकुमारी को अपने साथ नहीं ले जायेगा लेकिन उसने कहा कि रानी को अपने गलत वचन और उसे धोखे में रखने की सजा जरूर मिलनी चाहिए। इसलिए दूल्हे को चिड़ा और उसकी प्रजाति से क्षमा मांग कर उनके पैरो के नीचे से गुजर कर विवाह स्थल पर जाकर फेरे लेने होंगे। इसे सबने स्वीकार किया। तब से ही यह प्रथा चली आ रही है की लकड़ी के तोरण पर चिड़ियाएं बना कर दूल्हे को इनके नीचे से गुजरा जाता है और छड़ी तलवार से उन्हें उड़ाने की रस्म पूरी करता है। इस तरह यह परंपरा अब तक चली आ रही है। इन्ही घटनाओं के बाद से ही हिन्दू विवाह के समय दूल्हा ग्रह प्रवेश से पहले सभी समस्याओं और बुरी नजर के प्रतीक तोरण मारकर घर में प्रवेश करने की प्रथा की शुरुआत हुई थी जो आजतक चली आ रही है।
गांवों में तोरण का निर्माण खाती या फिर लकड़ी फर्नीचर के कारीगर करते है, लेकिन आजकल बाजार में बने बनाए सुंदर और फैंसी तोरण मिलने लग गए हैं, जिन पर गणेशजी व स्वास्तिक जैसे धार्मिक चिह्न अंकित होते हैं और दूल्हा उन पर तलवार से वार कर तोरण (राक्षस) मारने की रस्म पूर्ण करता है। शास्त्रों के अनुसार तोरण पर तोते का रूप रखे हुए का स्वरूप ही होना लेकिन इन दिनों तोते की जगह गणेशजी या धार्मिक चिन्हों को बना दिया जाता है। दूल्हा भी तोरण की जगह उन पर ही बार करता है। कहते हैं की यह शुभ की बजाय अशुभ कार्य हो जाता है। विद्वानों को इस बात को समझकर प्रचारित-प्रसारित करना चाहिए। एक तरफ हम शादी में गणेश पूजन कर उनको रिद्धि-सिद्धि सहित शादी में पधारने का निमंत्रण देते हैं और दूसरी तरफ तलवार से वार कर उनका अपमान करते हैं, यह उचित नहीं है। तोरण की रस्म पर ध्यान रखकर परंपरागत राक्षसी रूपी तोरण ही लाकर रस्म निभाएं।
प्रस्तुति:
अनिल जान्दू
पत्रकार, लेखक, ब्लॉगर
एफ-124, न्यू सिविल लाईन्स
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