* एक लिफाफा आफ़त बना * प्रियंका को नोटिस * दान का ढोल पीटना भी ठीक नहीं


 * एक लिफाफा आफ़त बना

* प्रियंका को नोटिस

* दान का ढोल पीटना भी ठीक नहीं

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अनिल जान्दू  - 9001139999

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पीएम मोदी ने 28 जनवरी को गुर्जरों के आराध्य स्थल मालासेरी डूंगरी मंदिर में लिफ़ाफ़े में कितने रूपए चढाए, पिछले कुछ दिनों से यह राजनीतिक चर्चा का विषय बना हुआ है, जो ठीक नहीं। यह बात दो-तीन महीने पहले भी उठी थी कि पीएम के लिफ़ाफ़े में कितने रूपए थे। कितने भी चढाए हों उससे क्या लेना-देना। लेकिन तब भी यही चर्चा का विषय था और अभी भी यही विषय है।

* मंदिर की रस्म के अनुसार दानपात्र को आठ महीने बाद खोला जाता है और जो भी रकम चढाई जाती है उसे सार्वजनिक किया जाता है। अतः अगस्त में दानपात्र को खोला गया, साथ ही पीएम के लिफ़ाफ़े को भी। अब इसी 21 रूपए को प्रियंका वाड्रा ने मंच से चुनावी मुद्दा बना दिया जो ठीक नहीं। वे इससे दस दिन पहले भी दौसा में एक समारोह में यही बोल चुकी हैं, तब भी मैने अपने ब्लॉग में लिखा था कि प्रियंका यह कैसी राजनीति कर रही हैं।अफसोस, इतनी हल्की स्तर की राजनीति सिर्फ कार्यकर्ताओं को करने देनी चाहिए, प्रियंका को यह शोभा नहीं देता। लेकिन खैर यह उनकी मर्जी, लेकिन अब कर ही दी है तो इसी को लेकर उसे सम्मन भी जारी हो गया। यह बात भी बडी अजीब है। मंदिर के महंत हेमराज पोसवाल ने भी अब प्रियंका वाड्रा के इस बयान को ग़लत कह दिया।

* यहां आश्चर्य की बात है कि पीएमओ का लिफाफा आम लिफाफा नहीं होता। उस पर पीएमओ कार्यालय की मुहर लगी हुई होती है। एक तरफ हेमराज पोसवाल कह रहे हैं कि लिफ़ाफ़े में 21 रूपए थे, यह उन्होंने नहीं कहा था, लेकिन लिफ़ाफ़े में कितने रूपए थे, यह भी हेमराज ने अब तक नहीं कहा। क्यों ॽ जबकि उन्हें बताना चाहिए था क्योंकि पीएमओ के लिफाफे में कितनी रकम चढाई गई यह जानने की जिज्ञासा सभी को रहती है। गुर्जर समाज को भी और आम इंसान को भी। लेकिन हेमराज ने ऐसा नहीं किया। यह गोलमाल की बात है।

* समझ में नहीं आता कि यह कैसी राजनीति हो रही है, जिसका देश के विकास और अहम मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं। पिछले महीने गहलोत ने सूर्यकांता व्यास के मंदिर के लिए पांच करोड़ रुपए मंजूर कर दिये और उस पर व्यास ने गहलोत की तारीफ कर दी तो उन्हें भाजपा का टिकट नहीं दिया गया। इससे पहले कैलाश मेघवाल ने कर दी तो उनका भी टिकट रोक दिया गया। वसुन्धरा राजे और गहलोत में राजनीतिक रिश्ते हैं तो वसु से भी नाराजगी जगजाहिर कर दी। यह क्या है ॽ 

* अब रही मंदिर में चढावे की बात, तो इसमें छिपाना क्या। वैसे विशुद्ध रूप से दान का कभी बखान नहीं किया जाता, लेकिन अब चलन ही ऐसा चल पड़ा है कि जो चढ़ाओ उसका ढोल भी पीटो। क्योंकि पूजा और चढावा भी अब पब्लिसिटी स्टंट में आ गया है जो चढाने वाले की ताकत का बखान करता है। हमारे राजस्थान के सांवरिया सेठ के हर साल करोड़ों रुपए का दान चढावे में आता है, लेकिन कोई बखान नहीं करता कि किसने कितने चढाए। तिरूपति बालाजी मंदिर में भी हर साल करोड़ों-करोड़ों का दान चढ़ावे में आता है लेकिन वहां भी कोई नहीं पूछता कि किसने कितना चढाया। लेकिन यहां अगर मोदी जी को एक साल में कितने गिफ्ट मिले इसकी अब नीलामी की जा रही है और उसकी खबरें अखबारों में प्रकाशित हो रही हैं तो मालासेरी डूंगरी मंदिर में चढाए गए दान को बता देने में कोई हर्ज भी नहीं है। जब उज्जैन के महाकाल मंदिर में कारीडोर बनवाने में करोड़ों रुपए खर्च किए गए और उनका सर्वत्र प्रचार भी किया गया तो मालासेरी डूंगरी को लेकर इतना गुस्सा क्यों ॽ अब प्रियंका वाड्रा को जो नोटिस मिला है उस पर वे क्या जवाब देंगी यह वही जानें। लेकिन ऐसी-ऐसी बातों पर नोटिस थमा देना भी अजीब कानूनी रिवाज है। पिछ्ले चुनावों में ममता बनर्जी पर एक कार्टूनिस्ट ने कार्टून बना दिया तो ममता ने उसे जेल भेज दिया। उच्च पद पर बैठे लोगों का क्या यही राजनीतिक स्तर है। वैसे ही इस दौर में किसी व्यक्ति विशेष के लिए भजन-कीर्तन करने वालों की बाढ आ गई है, और राजनीति के नाम पर वे यही कर रहे हैं।

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