सरकार सही है या डॉक्टर्स ?


‼️कहीं ऐसा न हो जाए कि सरकार इन अस्पतालों और डॉक्टरों का ईलाज़ न कर पाए और जनता को आगे आना पड़े?‼️

 _सरकार सही है या डॉक्टर्स ? इस सवाल के बीच फंसी हुई हैं जनता की साँसें!

 "राईट टू हैल्थ" जाए भाड़ में !! "राईट टू सर्वाइव" को ज़िन्दा रखा जाए!
 ✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी

 राईट टू हेल्थ यानि चिकित्सा का अधिकार!यह अधिकार आम नागरिकों के लिए एक ऐसा अधिकार है जिसका यदि सही तरह से निर्वाह हो तो आम और सर्वहारा वर्ग का जीवन यापन बेहद सरल हो सकता है। यह बिल वास्तव में प्रजातांत्रिक मुल्क में राम राज्य की कल्पना साकार होने जैसा है। राजस्थान में इस बिल को पारित कर दिया गया है। हम यह सोच रहे थे कि सर्वहारा वर्ग का इस बिल से स्वास्थ्य सुरक्षित हो जाएगा।इतना लोक कल्याणकारी बिल यदि पारित किया गया है तो इसका स्वागत होना चाहिए था मगर ये क्या? यहाँ तो बिल के विरोध में सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टर्स, कर्मचारी, मेडिकल स्टोर्स तक विरोध में उतर आए हैं। विरोध भी ऐसा की बिल में जो अधिकार आम आदमी को दिए गए थे वही छीन लिए गए हैं। आपातकालीन सेवाएं तक ख़तरे में डाल दी गईं हैं। मरीज़ मूल भूत चिकित्सा के लिए ही मारे मारे फिर रहे हैं। आपातकालीन रोगी जान देकर बिल पास होने की क़ीमत चुका रहे हैं। बिना इलाज़ मरीज़ों के मरने की ख़बरें आम हो रही हैं। सरकार और डॉक्टर्स के बीच के विवाद में मरीज़ों की जान ख़तरे में पड़ गई है। यदि कुछ दिनों यही सिलसिला चला तो आम जनता सरकार और चिकित्सकों के विरुद्ध सड़कों पर उतर आएगी। हालात इतने दयनीय हो गए हैं कि सरकार बिल के विरुद्ध कुछ सुनना नहीं चाहती और चिकित्सक बिल के पक्ष में आना नहीं चाहते।आख़िर क्या होगा इस बिल का भविष्य❓️क्या होगा मरीज़ों का भविष्य खरबूजे पर चाकू गिरे या चाकू पर खरबूजा नुकसान तो खरबूजे का ही होगा। जन हितकारी यह बिल जनता की जान का दुश्मन बन चुका है। दोस्तों! इस बिल के पीछे का सत्य क्या है ?इसे कोई नहीं समझ पा रहा।डॉक्टर्स हो सकता हो सही हों! उनके हर सवाल जायज़ हों! सरकार ने हो सकता है चुनावों में जनमत एक मुश्त अपने पक्ष में करने के लिए चुनावों से पहले यह बिल पारित किया हो! हो सकता है यह भी सही हो कि बिल का कोई दुष्प्रभाव निजी अस्पताल प्रबंधन! उनकी आय पर भी पड़ रहा हो ! मगर इस विवाद में आम जनता को जो खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है वह प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिए शर्मनाक बात है। जो सरकार ने किया वह सही भी हो! डॉक्टर्स जो कर रहे हैं वह भी ग़लत न हो! मगर जनता ने किसका क्या बिगाड़ा जो उसे दोनों के बीच पिसना पड़ रहा है। राज्य भर की चिकित्सा सुविधाओं पर ग्रहण लग चुका है। निजी तो निजी सरकारी अस्पताल भी तालाबंदी कर चुके हैं। तो क्या मरीज़ आस पास के राज्यों में जाकर अपना इलाज़ करवाएं मित्रों! चिकित्सा कर्मी जो कुछ कर सकते थे कर चुके हैं! जयपुर में उनका विरोध अभूतपूर्व साबित हो चुका है। इससे ज़ियादा आख़िर वे और क्या करेंगे? कब तक करेंगे? ज़िद्दी सरकार के नुमाइंदे यदि उनके तर्क सुनना ही नहीं चाह रहे तो क्या वे इसी तरह जनता को जानवरों की मौत मरने दें। गेआज जानवरों के अस्पताल खुले हैं।उनका इलाज़ हो पा रहा है मगर इंसानों के लिए अस्पताल के दरवाज़े बन्द हैं। 😨 मैं आज का ब्लॉग डॉक्टरों और सरकार दोनों के विरुद्ध लिख रहा हूँ। हो सकता है डॉक्टर्स कहें कि इस बिल से उनका जीवन मिट्टी में मिल जाएगा ! बिल में हज़ारों कमियां वे गिना सकते हों मगर जनता के प्रति उनकी संवेदनाएं यदि इसी तरह मिट्टी में मिलीं तो उनकी बददुआएँ उनको कहीं का नहीं छोड़ेंगी।🤨 राइट टू हेल्थ बिल के पारित होने के साथ ही अब राजस्थान के सभी नागरिकों को सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में इलाज़ की गारंटी मिल जाएगी। इमरजेंसी की हालत में प्राइवेट अस्पताल में फ्री इलाज़ मिलेगा। इलाज़ पर आए ख़र्च का भुगतान बाद में सरकार करेगी। इस शर्त पर असहमति है। अस्पताल संचालकों का कहना है कि सरकार ने इमरजेंसी की कंडीशन साफ़ नहीं की हैं। सर दर्द से लेकर पैर दर्द तक मरीज़ के लिए तो इमरजेंसी ही होता है। ऐसे में सभी नागरिक सीधे बिल का हवाला देते हुए इमरजेंसी में ही पहुंचेंगे और अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में मरीजों को कौन कौन और कैसे समझा पाएगा ऐसी स्थिति में विवाद होना तय है! साथ ही फ्री इलाज़ की जिम्मेदारी निजी चिकित्सालय कैसे ले सकते हैं।   इलाज़ पर होने वाला खर्चा बीमारी के प्रकार और इलाज की प्रक्रिया पर निर्भर करता है... लेकिन सरकार द्वारा इमरजेंसी कंडीशंस और खर्चे का कोई जिक्र नहीं किया गया है।😨 डॉक्टरों का कहना है कि सरकार द्वारा बनाए गए राइट टू हेल्थ बिल के मसौदे में सांप काटने और सड़क दुर्घटना को शामिल किया गया है जबकि इससे कहीं आपातकालीन अवस्था दिल के दौरे, दिमाग के दौरे और अन्य बीमारियां हैं। अस्पताल द्वारा किसी भी तरह की लापरवाही की गई तो इसे राइट टू हैल्थ का उल्लंघन मानते हुए स्वास्थ्य प्राधिकरण कार्यवाही करेगा। उल्लंघन से जुड़े मामले में फैसले को किसी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती। सरकार द्वारा राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण का गठन किया जाएगा जिसका कार्य राइट टू हेल्थ बिल के पालन की प्रक्रिया तय करना होगा । राजस्थान जहां मेडिकल काउंसिल और जहां पर इलाज संबंधी समस्याओं पर फ़ैसले होते हैं वहां अलग से नया प्राधिकरण बनाने की आवश्यकता क्या है यदि सरकार राइट टू हैल्थ बिल को बिल्कुल सही तरीके से लागू करना चाहती है तो इसके मसौदे पर राज्य के डॉक्टरों से पहले चर्चा करती लेकिन ऐसा नहीं किया गया राज्य की जनता से वोट लैंड लेने के लिए हेल्प के नाम पर मिलती गोलीबारी रही है जानबूझकर इन बिलों में शर्तों का उल्लेख नहीं किया गया हैं। इससे सरकार की मंशा साफ है कि आगे चलकर चुनावी रेवड़ियां बांटने की ज़रूरतों को जोड़कर डॉक्टरों को परेशान किया जाएगा।आइए हम देखें कि अगर डॉक्टर राइट टू हेल्थ का विरोध जारी रखते हैं तो सरकार के पास ऐसे कौन-कौन से हथियार हैं जिससे वे डॉक्टरों और निजी अस्पतालों को बिल मानने के लिए मजबूर कर सकते हैं। रियायती दरों पर ज़मीन आवंटित करवाकर अस्पताल बनवाने वालों का आवंटन निरस्त करने का अधिकार सरकार के पास है! जिन अस्पतालों के नक्शे बिना रूट किए करवाए बनाए गए हैं उन्हें निरस्त किया जा सकता है! जिन अस्पतालों के परिसर में पार्किंग और फायर फाइटिंग की सुविधा नहीं है उनको सील किया जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है! कमर्शियल दरों पर नगरीय विकास कर यूडी टैक्स की वसूली की जा सकती है! जिन अस्पतालों में चिरंजीवी स्वास्थ्य योजना या आरजीएचएस के बिल का बकाया भुगतान बिना कारण बताए रोका जा सकता है! लेकिन मुद्दे की बात यह है कि जिस प्रजा के लिए गहलोत सरकार चिकित्सा सुविधाओं को शुरू कराने की योजना बनाने में जुटी है! उसके लिए ही जनता को 10 दिनों से इलाज के लिए दर-दर भटकना रहा है। ओपीडी में मरीजों का इलाज नहीं मिल पा रहा , जिसके चलते सरकारी अस्पतालों पर बोझ बढ़ता जा रहा है । इनका इलाज़ आज नहीं किया गया तो प्रदेश की जनता को इलाज के लिए बाहर जाना पड़ेगा।

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