खुलासा: हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर का एक बड़ा युवा वर्ग अब एमडी ड्रग्स की गिरफ्त में

खुलासा: हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर का एक बड़ा युवा वर्ग अब एमडी ड्रग्स की गिरफ्त में

एक ग्राम की कीमत 3000 रुपए, ‘चावल’ कोडवर्ड से बिकता है


अनिल जांदू और साप्ताहिक राजस्थान स्तम्भ टीम ने जानेश्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ दोनो जिलों के जमीनी हालात

ढाणी, गांव, कस्बें और तहसील तक फैला हुआ है नशे का नेटवर्क


हनुमानगढ़/श्रीगंगानगर।
नशीले पदार्थ अफीम और स्मैक के बाद अब हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर का युवा खतरनाक ड्रग्स एमडी की जकड़ में आने लगा है। एमडी यानी एमडीएमए। फिल्म नगरी मुंबई में यह ड्रग्स बॉलीवुड पार्टियों में उपयोग में ज्यादा आता है। हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर में भी सर्वाधिक सप्लाई सीमावर्ती क्षेत्र और डायरेक्ट बंदरगाह मुंबई से ही हो रही है। बताया जा रहा है कि मुंबई में यह यूरोप से तस्करी करके लाया जाता है। सूत्रों के मुताबिक दरअसल हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर के कई बड़े लोग जो इन दिनों राजनीति में सक्रिय हैं का मुंबई से सीधा संपर्क है। हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर एवं इसके आस-पास के इलाकों में यह मादक पदार्थ एमडी 2500 से 3000 हजार रुपए प्रति ग्राम में बिक रहा है जो कोकीन के बाद सबसे महंगा है। युवा इसका सेवन विभिन्न वैरायटी के गुटखा के साथ कर रहे हैं। कुछ पानी में घोलकर भी पीते हैं यह क्रिस्टल जैसा होता है और घुलनशील है। क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकार अनिल जांदू कि ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया है कि हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर में यह एमडी चुनिंदा दुकानों एवं होटलों पर कोडवर्ड से बिक रहा है। इसे चावल का दाना कहा जाता है। कोई भी दुकानदार इसे एमडी के नाम से नहीं देता। हां, चावल कहते ही मिल जाता है। अकेले श्रीगंगानगर शहर में इस एमडी की रोजाना की खपत 4 लाख रुपए से भी अधिक की बताई जा रही है, जिसको शहर के आठ-दस लोग ही मुख्य रूप से संचालित करते हैं। इन 8-10 लोगों के नीचे कई दुकानदार एवं होटल-ढाबा संचालक हैं जो इसकी बिक्री करते हैं। पुलिस की अब इन पर पैनी नजर बनी हुई है। पुलिस कार्रवाई की फिराक में है। यह चावल के दानों से बड़ा होता है। कोडवर्ड से मांगने पर ही और मांगने वाले की नशेड़ी शक्ल देखकर ही विक्रेता इसे बेच रहे हैं। बेचते वक्त भी पूरी सावधानी बरतते हैं ताकि पकड़े न जाएं। यह चीनी जैसा सफेद होता है, जिसका सेवन करते ही नशा करने वाले शख्स का शरीर सुन्न पड़ जाता है। इसका एक बार सेवन करने से कई घंटे नशा रहता है। श्रीगंगानगर में में यह एक ग्राम, दो ग्राम, 8 ग्राम, 13 ग्राम, 15 ग्राम, 20 ग्राम व 50 ग्राम या इससे अधिक वजन में पुड़िया में बिक रहा है। पुलिस सूत्रों के अनुसार एमडी मतलब एक्सटैसी को कोकीन के बाद सबसे महंगा नशा बताया जाता है जो खासतौर से बॉलीवुड की पार्टियों में नशे के रूप में उपयोग किया जाता है। श्रीगंगानगर पूरे जिले सहित हनुमानगढ़ में इसका जाल फैलता जा रहा है। कुल मिलाकर श्रीगंगानगर- हनुमानगढ़ का युवा नशे की जकड़ में है और खास तौर पर यहां पर स्मैक, अफीम और एमडी का नशा सबसे अधिक हो रहा है। इसी का परिणाम ये भी है कि यहां पर चोरी और फिरौती की वारदातें लगातार बढ़ती जा रही हैं। आदत पूरी करने के लिए युवा पीढ़ी चोरी, फिरौती जैसे काम में फंस रही है और गुमराह करने को नाम ले रही है बड़े-बड़े गैंगस्टर का। कुछ शौकीन भी इसकी गिरफ्त में हैं। एमडी नशे को श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों एवं इसके 20-25 किलोमीटर के एरिया में इसको चावल के कोडवर्ड के नाम से बेचा जाता है। वहीं जिलों के अन्य क्षेत्रों में इसके मुख्य सप्लायरों ने अलग-अलग कोडवर्ड रख रखे हैं। इससे इनके मुख्य तस्कर एवं निचले स्तर पर बिक्री करने वालों के बारे में किसी को भनक तक नहीं लगे। पत्रकार अनिल जांदू ने शहर से लेकर देहात के कई थाना इलाको में पड़ताल की तो उसमें पाया कि शहर से लेकर कस्बों तक नशे का पूरा नेटवर्क फैला है। एमडी नशे के बारे में जानता हर कोई है, लेकिन इसकी खरीद कोडवर्ड से ही होती है। अगर बगैर कोर्ड वर्ड के बगैर इसको मांगा जाता है तो कोई भी इसको नहीं देता है। इस नशे के बाद खुदकुशी की सोच आती है। एक्सपर्ट बोलते है कि सेवन से सोच नकारात्मक होती है। नशा छुड़ाने वाले डॉक्टर्स का कहना है कि एमडी (मिथाइलीनडाईऑक्सी मैथाम्फेटामाइन यानी एक्सटैसी) का नशा सिर में चढ़ जाता है। लगातार इसके सेवन से तनाव रहने लगता है। यह नशा करने वाला धीरे-धीरे डिप्रेशन में चला जाता है और बाद में खुदकुशी करने की सोचने लगता है। जीवन में नकारात्मकता आने लगती है। जिलेभर में अफीम, स्मैक व एमडी नशे का नेटवर्क फैला हुआ है। गांवों कस्बों तक में नशा बिक रहा है फिर भी थाना पुलिस की ओर से कार्रवाईयां नही की जाती हैं। इसके चलते डीएसटी को कार्रवाईयां करनी पड़ती हैं। हालत ये है कि एमडी नशे के खिलाफ जिले में अभी तक एक भी कारवाई नहीं हुई है। इस संबंध में डीएसटी टीम और  खुफिया तंत्र लगातार पत्रकारों और मीडिया के संपर्क में बने रहते हैं।


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